BA Semester-5 Paper-2B Econimics - International Economics - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2775
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- तुलनात्मक लागत सिद्धान्त अर्द्ध-विकसित देशों में लागू क्यों नहीं होता?

उत्तर -

तुलनात्मक लागत सिद्धान्त के अर्द्ध-विकसित देशों में लागू न होने के कारण

 तुलनात्मक लागत सिद्धान्त के अर्द्ध-विकसित देशों में लागू न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -

1. तुलनात्मक लागत का स्थैतिक स्वरूप - तुलनात्मक लागत सिद्धान्त अर्द्ध-विकसित देशों में न लागू होने का कारण यह है कि इस सिद्धान्त में अनेक ऐसी स्थैतिक मान्यताएँ पायी जाती हैं जो अर्द्ध- विकसित देशों में नहीं पायी जाती। " प्रतिष्ठित व्यापार का सिद्धान्त रुचियों, साधनों तथा तकनीकी ज्ञान को स्थिर मानता है और इन्हीं के आधार पर साधनों का सर्वोत्तम वितरण लागू करने का प्रयत्न करता है। ये मान्यताएँ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दीर्घकालीन प्रावैगिक विकास के विश्लेषण में बाधा उत्पन्न करती है और विकास के सार को भुला देती है।

तुलनात्मक लागत का सिद्धान्त विकास की दर पर ध्यान नहीं देता बल्कि एक विशेष समय में समग्र उत्पादन को अधिक करने पर बल देता है, किन्तु जहाँ तक अर्द्ध-विकसित देशों का प्रश्न है, उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण है विकास की दर को गतिशील बनाना न कि उत्पादन अधिकतम करना। इसके लिए साधनों के वितरण में परिवर्तन करना आवश्यक होता है। यह सम्भव है कि कोई अर्द्ध-विकसित देश कुछ विशिष्ट साधनों का प्रयोग करके अपने उत्पादन को अधिक बढ़ा सके, किन्तु उसके लिए यह और भी अच्छा होगा कि यदि वह उन साधनों का प्रयोग आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने में करे, भले ही उसका उत्पादन तुलनात्मक रूप से कम हो।

इस प्रकार तुलनात्मक लागत का सिद्धान्त इस प्रकार की स्थैतिक अर्थव्यवस्था की कल्पना करता है जिसमें साधनों की पूर्ति स्थिर रहती है। उस अर्थव्यवस्था में जिसमें आर्थिक विकास की प्रक्रिया में सदैव नये संसाधनों को विकसित किया जाता है, यह मान्यता लागू नहीं होती है। इस प्रकार अर्द्ध-विकसित देशों में स्थैतिक सिद्धान्त के स्थान पर गत्यात्मक सिद्धान्त की आवश्यकता होती है।

2. वितरण पक्ष की अवहेलना - तुलनात्मक लागत का सिद्धान्त केवल उत्पादन पक्ष पर बल देता है। इस सिद्धान्त से यह बात स्पष्ट होती है कि विश्व का कुल उत्पादन किस प्रकार विशिष्टीकरण द्वारा अधिकतम किया जा सकता है, किन्तु इसके द्वारा वितरण पक्ष की अवहेलना की जाती है। वास्तव में किसी इस प्रकार की आर्थिक नीति का समर्थन नहीं किया जा सकता जो उत्पादन में वृद्धि करने के साथ वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हो अर्द्ध-विकसित राष्ट्र इस प्रकार की नीति का कदापि समर्थन नहीं कर सकते जिससे वे और अधिक निर्धन हो जायें। यदि कृषि और उद्योग दोनों की तुलना की जाये तो हम देखेंगे कि उद्योगों में प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है। प्रायः अर्द्ध-विकसित देशों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। उन्हे अपनी प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने के लिए उद्योगों की स्थापना तभी हो सकती है जब स्वतंत्र व्यापार प्रतिबन्धित हो, किन्तु अर्द्ध-विकसित देशों में प्रतिबन्ध उस सीमा से आगे नहीं लगाना चाहिए जहाँ उनके निरपेक्ष अंश में होने वाली सीमान्त वृद्धि शून्य के बराबर हो जाये।

अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि विकसित या अर्द्ध-विकसित देशों के मध्य प्रतिबन्ध रहित स्वतत्र व्यापार होता है तो उससे देश मे आय का वितरण असमान होगा क्योंकि औद्योगिक रूप से विकसित राष्ट्रों को तो लाभ होगा किन्तु जो राष्ट्र पिछड़े हुए वे और भी गरीब हो जायेगे।

3. अर्द्ध-विकसित देशों मे पूर्ण रोजगार और गतिशीलता का अभाव - तुलनात्मक लागत सिद्धान्त करने वाले देशों में उत्पत्ति के साधनों पूर्ण रोजगार एव गतिशीलता को स्वीकार किया जाता है, किन्तु अर्द्ध-विकसित देशों मे पूर्ण रोजगार की स्थिति नहीं होती है और न ही साधनों में पूर्ण गतिशीलता पायी जाती है। बल्कि इसके स्थान पर इन देशों मे बेरोजगारी, अर्द्ध-बेरोजगारी तथा अदृश्य रोजगारी बड़े पैमाने पर पायी जाती है। कृषि क्षेत्रों के श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता प्रायः शून्य होती है। यदि अर्द्ध- विकसित देशों में तुलनात्मक लागत के सिद्धान्त को क्रियान्वित किया जाये तो इससे बेरोजगारी की समस्या हल नहीं होगी क्योंकि इससे उद्योगों का विकास नहीं होगा। किन्तु यदि इसके स्थान पर स्वतंत्र व्यापार को प्रतिबन्धित करके आयात प्रतिस्थापन किया जाये तो बेरोजगारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है तथा राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि की जा सकती है।

4. पूर्ण प्रतियोगिता की अनुपस्थिति - तुलनात्मक लागत सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित है, जिसका वास्तविक जगत में अभाव है। वास्तव में अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा होती है जिसके कारण कीमतें सीमान्त लागत के बराबर नहीं होती जबकि तुलनात्मक लागत सिद्धान्त में इन दोनों को समान माना गया है। इसके अतिरिक्त इस सिद्धान्त में कीमत संयंत्र या बाजार की गति को स्वतंत्र माना गया है, किन्तु आज के समय में आर्थिक नियोजन तथा कीमत नियंत्रण अर्द्ध-विकसित तथा विकासशील देशों का अनिवार्य अंग माना गया है जो तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की मान्यताओं से मेल नहीं खाता है।

5. स्वतंत्र व्यापार में बाधाएँ - तुलनात्मक लागत सिद्धान्त स्वतंत्र व्यापार में बाधाओं को स्वीकार नहीं करता हैं। यह अन्तर्राष्ट्रीय वस्तु विनिमय के क्षेत्र में एक प्रकार से प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अहस्तक्षेप के सिद्धान्त का विस्तृत रूप है। इस सिद्धान्त की मान्यता यह है कि दो व्यापारी देशों के मध्य किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए ताकि अन्तर्राष्ट्रीय विशिष्टीकरण के कारण होने वाले पूरक लाभ को प्राप्त किया जा सके। इस सिद्धान्त को दो समान रूप से विकसित राष्ट्रों में तो आसानी से लागू किया जा सकता है किन्तु अर्द्ध-विकसित देशों में लागू करने पर इसका ढाँचा लड़खड़ाने लगता है। जब दो या दो से अधिक देश, जो प्रायः सामान्य वस्तुएँ उत्पादित करते हैं, अपने माल को विश्व बाजार में बेचना चाहते हैं तो उनमें गलाकाट प्रतियोगिता होती है, वे राशिपातन तथा अवमूल्यन का सहारा लेते हैं। यदि प्रत्येक देश को प्रतियोगिता करने की पूर्ण स्वतंत्रता दे दी जाये तो शक्तिशाली राष्ट्र बाजारों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लेगा तथा कमजोर राष्ट्र बाहर निकल जायेगा। प्रतियोगिता के कारण कभी-कभी इन राष्ट्रों में इतनी कटुता आ जाती है कि युद्ध और विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। स्मिथ तथा रिकार्डो द्वारा बताया गया तुलनात्मक लाभ का सिद्धान्त अर्द्ध-विकसित देशों में लागू नहीं होता क्योंकि आज कोई भी देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र व्यापार को मान्यता नहीं दे रहे हैं, बल्कि प्रतिबन्धित व्यापार एवं संरक्षण का सहारा ले रहे हैं।

6. अर्द्ध- विकसित देशों का असन्तुलित विकास - अर्द्ध-विकसित देश यदि तुलनात्मक लागत सिद्धान्त लागत के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार करते हैं तो उनमें विकास की प्रक्रिया असन्तुलित हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि इनकी अर्थव्यवस्थाएँ दोहरी अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार देश तुलनात्मक लाभ के आधार पर जो उद्योग करते हैं उससे इसके आस-पास के क्षेत्र तो विकसित होते हैं किन्तु अर्थव्यवस्था पिछड़ी बनी रहती है और असन्तुलित हो जाती है। प्रो. बुईक ने इसे दोहरे समाज का निर्माण बताया है। उनके शब्दों में "निःसन्देह सामाजिक दोहरेपन का सर्वाधिक प्रचलित रूप उस क्षेत्र में पाया जाता है जहाँ पश्चिम से आयातित पूँजीवाद ने पूंजीवाद के पूर्व के कृषक समुदाय में प्रवेश कर लिया हो।'

7. अर्द्ध-विकसित देशों में प्रतिकूल व्यापार शर्त - अर्द्ध-विकसित देशों की सबसे प्रमुख समस्या यह होती है कि व्यापार की शर्तें इनके अनुकूल नहीं होतीं। अब इस तर्क का कोई महत्व नहीं रहा है कि प्राथमिक उत्पादन करने वाले देशों के लिए व्यापारिक शर्तें अनुकूल होती हैं। इसका कारण यह है कि प्राथमिक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ती हुई लागत के आधार पर होता है जबकि औद्योगिक उत्पादन घटती

लागत के आधार पर होता है किन्तु विश्व में आज अनेक ऐसे कारण हैं जो अर्द्धविकसित देशों के लिए व्यापार शर्तों को अनुकूल नहीं होने देते जैसे अब विकसित देश अर्द्ध-विकसित देशों से कच्चा माल खरीदने के स्थान पर उनके विकल्पों का प्रयोग करने लगे हैं। आज विकसित देश भी अपनी आवश्यकतानुसार कच्चे माल का उत्पादन कर रहे हैं तथा प्राथमिक उत्पादनों के लिए इनकी मांग कम हो गयी है।

निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचना से यह निष्कर्ष निकलता है कि तुलनात्मक लागत सिद्धान्त व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक दोनों ही रूपों में अर्द्ध-विकसित देशों में लागू नहीं होता है। उपर्युक्त आलोचनाओं के कारण कई विद्वान प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के व्यापार के सिद्धान्त को अर्द्ध-विकसित देशों के लिए अव्यवहारिक मानते हैं। इस सम्बन्ध में प्रो. मायर तथा वाल्डवियन का विचार है कि, "निश्चित ही यह सत्य है कि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के व्यापार के सिद्धान्त पर विकास समस्याओं एवं पिछड़े देशों के विशिष्ट लक्षणों के संदर्भ में पुनर्विचार किया जाना आवश्यक है। अभी तक इस बात पर पर्याप्त विचार विमर्श नहीं किया गया है। इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है कि तुलनात्मक लागत सिद्धान्त तथा व्यापार से होने वाले लाभों के सम्बन्ध में प्रतिष्ठित विचार गतिशील दशाओं में भी लागू हो सकते हैं, किन्तु इसके लिए सिद्धान्त में पर्याप्त सुधार होना आवश्यक होता है और जब तक ये सुधार नहीं किये जाते तब तक अर्द्ध-विकसित देशों में तुलनात्मक सिद्धान्त की व्यावहारिकता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहेगा तथा आलोचक इसी प्रकार आलोचना करते रहेंगे कि प्रतिष्ठित व्यापार सिद्धान्त ने पिछड़े देशों में विकास को सीमित बना दिया है।

अर्द्ध-विकसित देशों के पास प्रतिष्ठित तुलनात्मक लागत सिद्धान्त के स्थान पर संरक्षण की नीति अपनाने का कारण मौजूद है। इन देशों में चल रहे निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए औद्योगीकरण करना आवश्यक है जो शिशु उद्योगों को अस्थायी रूप से संरक्षण प्रदान करके किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अर्द्ध-विकसित देशों के सम्मुख मुद्रा-प्रसार तथा विदेशी विनिमय की समस्याएँ भी आती हैं। इस कारण इन्हें अपनी आर्थिक नीति का संचालन करते हुए विदेशी व्यापार पर नियंत्रण करना आवश्यक हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र से आप क्या समझते हैं? इसकी विषय-सामग्री एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र का अर्थ व परिभाषा दीजिए तथा इसके विषय क्षेत्र व विषय-सामग्री का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
  5. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र का क्या अर्थ है?
  6. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कौन-कौन सी प्रमुख आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं?
  7. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से आप क्या समझते हैं? साथ ही यह भी स्पष्ट कीजिए कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने किन आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है?
  8. प्रश्न- 'अन्तरक्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आर्थिक आधार श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण है।' स्पष्ट कीजिए।
  9. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रभाव बताइये।
  10. प्रश्न- अन्तक्षेत्रीय व्यापार की प्रमुख विशेषताएँ कौन-सी हैं? अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किस प्रकार अन्तर्क्षेत्रीय व्यापार से भिन्न है?
  11. प्रश्न- अन्तर्क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर बताइये।
  12. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का क्या अर्थ है? अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का क्या महत्व है?
  13. प्रश्न- विदेश व्यापार से क्या लाभ होते हैं?
  14. प्रश्न- विदेशी व्यापार से क्या-क्या हानि होती है?
  15. प्रश्न- आन्तरिक व्यापार व विदेशी व्यापार में क्या अन्तर है?
  16. प्रश्न- अन्तक्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में क्या समानताएँ है?
  17. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर वणिकवादी विचारधारा का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- एडम स्मिथ के निरपेक्ष लाभ के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  19. प्रश्न- रिकार्डो का तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- एडम स्मिथ के लागतों के निरपेक्ष लाभ सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- क्या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए पृथक सिद्धान्त की आवश्यकता है?
  22. प्रश्न- एडम स्मिथ के स्वतन्त्र व्यापार सिद्धान्त का प्रतिपादन कीजिए।
  23. प्रश्न- उन कारणों को स्पष्ट कीजिए जिससे तुलनात्मक लागत सिद्धान्त विकासशील देशों या अर्द्ध विकसित देशों में लागू नहीं होता है?
  24. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तुलनात्मक लाभ के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए कीजिए।
  25. प्रश्न- तुलनात्मक लागत लाभ सिद्धान्त की मान्यतायें बताइये।
  26. प्रश्न- लागतों में अन्तर के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- तुलनात्मक लागत लाभ सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- तुलनात्मक लागत सिद्धान्त अर्द्ध-विकसित देशों में लागू क्यों नहीं होता?
  29. प्रश्न- क्या आनुभाविक जाँच से तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की सत्यता स्थापित की गयी है? स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- मिल द्वारा प्रतिपादित अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  31. प्रश्न- व्यापार की शर्तों से क्या आशय है? व्यापार की शर्तों के प्रकार को समझाइये
  32. प्रश्न- व्यापार की शर्तों के प्रकार की व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- व्यापार की शर्तों को प्रभावित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- अर्द्धविकसित देशों की व्यापार की शर्तों के प्रतिकूल रहने के क्या कारण है? इनके सुधार हेतु सुझाव भी दीजिए।
  35. प्रश्न- अर्द्ध-विकसित देशों में व्यापार की शर्तों में सुधार हेतु सुझाव दीजिए।
  36. प्रश्न- "व्यापार की शर्तें एवं आर्थिक विकास आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।" व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- व्यापार की शर्तें आर्थिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  38. प्रश्न- संरक्षण के लिए शिशु उद्योग तर्क का परीक्षण कीजिए।
  39. प्रश्न- व्यापार की शर्तों का महत्व समझाइये ।
  40. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अवसर लागत सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- अवसर लागत का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- अवसर लागत सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइये।
  43. प्रश्न- स्थिर अवसर लागत के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को समझाइये।
  44. प्रश्न- स्थिर लागत की दशा में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कब लाभप्रद होता है?
  45. प्रश्न- बढ़ती अवसर लागत की दशा में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को समझाइये।
  46. प्रश्न- घटती अवसर लागत की दशा में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को समझाइये।
  47. प्रश्न- अवसर सिद्धान्त किन मायनों में परम्परागत तुलनात्मक लागत सिद्धान्त से श्रेष्ठ है?
  48. प्रश्न- अवसर लागत सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- वास्तविक लागत सिद्धान्त एवं अवसर लागत सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  50. प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार की अवधारणा का विश्लेषण कीजिए।
  51. प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
  52. प्रश्न- स्वतन्त्र एवं संरक्षण व्यापार में अन्तर लिखिये। स्वतंत्र व्यापार के गुण व दोष बताइये।
  53. प्रश्न- व्यापार संरक्षण नीति किसे कहते हैं? संरक्षण व्यापार से लाभ व हानियाँ बताइए।
  54. प्रश्न- अल्पविकसित या विकासशील या गरीब देशों में संरक्षण व्यापार की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक ब्लॉक से क्या आशय है? इसके विकास का सिद्धान्त उद्देश्य तथा प्रकारों को समझाइये।
  56. प्रश्न- व्यापारिक ब्लॉक की उत्पत्ति का सिद्धान्त समझाइए।
  57. प्रश्न- वैश्विक व्यापारिक ब्लॉकों के उद्देश्य तथा प्रकार बताइए।
  58. प्रश्न- वैश्विक व्यापारिक ब्लॉकों के लाभ व दोष समझाइए।
  59. प्रश्न- वैश्विक व्यापारिक ब्लॉकों के दोष / कमियाँ बताइए।
  60. प्रश्न- सीमा संघ के स्थैतिक तथा प्रावैगिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- सीमा संघ के प्रावैगिक प्रभाव कौन-कौन से होते हैं?
  62. प्रश्न- एसियान क्षेत्रों की प्रगति पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- ब्रिक्स (BRICS) से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- भारत, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका संवाद मंच (IBSA) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- दक्षिण एशियाई अधिमान व्यापार ठहराव का क्या है? इसका औचित्य व प्रगति बताइये।
  66. प्रश्न- एशियाई क्षेत्र में सीमा शुल्क संघ बनाने में क्या समस्याएँ हैं?
  67. प्रश्न- भुगतान सन्तुलन से क्या आशय है? भुगतान सन्तुलन के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- भुगतान सन्तुलन के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- पूँजी खाता परिवर्तनशीलता क्या है? इसको लागू करने की पूर्व शर्तें क्या हैं?
  70. प्रश्न- "भुगतान सन्तुलन सदैव सन्तुलन में रहता है।' विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- भुगतान संतुलन के समायोजन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भुगतान असन्तुलन के क्या परिणाम होते हैं?
  73. प्रश्न- भुगतान असन्तुलन के कारणों को समझाइये।
  74. प्रश्न- मार्शल-लर्नर शर्त (Marshall - Lerner Condition) का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भुगतान सन्तुलन व व्यापार सन्तुलन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- तुलनात्मक लागत का हैक्सचर-ओहलिन सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  77. प्रश्न- हेक्सचर-ओहलिन सिद्धान्त की मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के परम्परावादी सिद्धान्त व हेक्सचर ओहलिन सिद्धान्त की तुलना कीजिए।
  79. प्रश्न- हेक्सचर-ओहलिन के सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  80. प्रश्न- तकनीकी अन्तराल सिद्धान्त (Technological Gap Model ) का विश्लेषण कीजिए।
  81. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों को बताइये तथा यह बताइये कि इनकी माप किस प्रकार की जाती है?
  82. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की हानियों को बताइये।
  83. प्रश्न- लियोनतीफ का विरोधाभास क्या है? बताइये।
  84. प्रश्न- रिब्जन्सकी प्रमेय की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- निर्धनताकारी विकास को समझाइए।
  86. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का पाल कुग्रमैन सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना तथा उद्देश्य बताइये।
  88. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य बताइये।
  89. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख उपलब्धियों तथा असफलताओं का वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की कार्यप्रणाली की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- विश्व बैंक के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- विश्व बैंक की सफलतायें या प्रगति बताइये।
  95. प्रश्न- विश्व बैंक की असफलतायें बताइये।
  96. प्रश्न- एशियन विकास बैंक की कार्यप्रणाली समझाइये ।
  97. प्रश्न- एशियाई विकास बैंक के मुख्य उद्देश्य बताइये।
  98. प्रश्न- एशियाई विकास बैंक की सदस्यता पूँजी व प्रबन्ध को बताइये।
  99. प्रश्न- "विश्व बैंक की स्थापना अर्द्धविकसित देशों के लिये वरदान है।' स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- विश्व बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
  101. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- भारत तथा विश्व बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
  103. प्रश्न- 'तटकर एवं व्यापार समझौते' (गैट) पर एक लेख लिखिए।
  104. प्रश्न- व्यापार एवं प्रशुल्क पर हुए सामान्य समझौते (GATT) के प्रमुख उद्देश्य कौन-कौन से हैं?
  105. प्रश्न- गैट के मौलिक सिद्धान्त क्या थे?
  106. प्रश्न- गैट के प्रमुख कार्य बताइये।
  107. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन क्या है? इसके प्रमुख उद्देश्यों को बताइये।
  108. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य बताइये।
  109. प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाले सम्भावित लाभों एवं हानियों का विवेचन कीजिए।
  110. प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाली सम्भावित हानियों को बताइए।
  111. प्रश्न- अन्य विकासशील देशों के संदर्भ में भारत की स्थिति बताइये।
  112. प्रश्न- विकासशील देशों के दृष्टिकोण से विश्व व्यापार संगठन समझौते की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- भारत को अंकटाड से होने वाले लाभों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था पर भूमण्डलीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को इंगित कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से आप क्या समझते हैं? प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सन्दर्भ में सरकार द्वारा बनाए गए नीतियों का उल्लेख कीजिए?
  116. प्रश्न- गैट तथा अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के समझौते बताइये।
  118. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन का संगठनात्मक ढाँचा प्रस्तुत कीजिए।
  119. प्रश्न- बौद्धिक सम्पदा अधिकार से आप क्या समझते हैं?
  120. प्रश्न- "विश्व व्यापार संगठन गैट (GATT) की तुलना में कहीं अधिक विस्तृत एवं व्यापक वैधानिक अधिकार वाला संगठन है।' विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
  122. प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित उपाय (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार से आप क्या समझते हैं? विश्व व्यापार संगठन ने इस सम्बन्ध में क्या भूमिका निभायी है?
  124. प्रश्न- 'बहुपक्षीय मुद्दे तथा विश्व व्यापार संगठन' को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की विवेचना कीजिए।
  126. प्रश्न- अंकटाड के उद्देश्य एवं स्वीकृत सिद्धान्तों को बताइये।
  127. प्रश्न- अंकटाड के कार्य बताइये।
  128. प्रश्न- दसवें अंकटाड पर टिप्पणी लिखिए।
  129. प्रश्न- विदेशी व्यापार में विविधता लाने की दृष्टि से अंकटाड की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- उत्तर-दक्षिण व्यापार संवाद क्या है?
  131. प्रश्न- दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Coorperation) से आप क्या समझते हैं?
  132. प्रश्न- विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड से आप क्या समझते हैं? यह एफडीआई से कैसे सम्बद्ध है?
  133. प्रश्न- विदेशी पूँजी किसे कहते हैं?
  134. प्रश्न- अभ्यंश से आप क्या समझते हैं? आयात अभ्यंश के विभिन्न प्रकारों को बताइये।
  135. प्रश्न- आयात अभ्यंशों के विभिन्न प्रकार बताइये।
  136. प्रश्न- आयात अभ्यंश के विभिन्न प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
  137. प्रश्न- आयांत अभ्यंश के उद्देश्य बताइये।
  138. प्रश्न- अभ्यंश प्रणाली के पक्ष में तर्क दीजिए।
  139. प्रश्न- प्रभावी संरक्षण पर टिप्पणी।
  140. प्रश्न- आयात प्रतिस्थापन से आप क्या समझते हैं?
  141. प्रश्न- आयात प्रतिस्थापन से लाभ बताइये।
  142. प्रश्न- आयाल अभ्यंश एवं प्रशुल्क की तुलना कीजिए।
  143. प्रश्न- राशिपातन के स्वभाव एवं उसके विभिन्न रूपों की विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
  145. प्रश्न- विदेशों में कम मूल्य पर बेचने की नीति से आप क्या समझते हैं?
  146. प्रश्न- प्रशुल्क के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- गैर-प्रशुल्क बाधाएँ (Non-tariff Barriers) किसे कहते हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  148. प्रश्न- प्रशुल्क का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  149. प्रश्न- प्रशुल्क युद्ध से क्या आशय है?
  150. प्रश्न- प्रशुल्क युद्ध को चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  151. प्रश्न- भारत सरकार की प्रशुल्क नीतियाँ।
  152. प्रश्न- "अनुकूलतम प्रशुल्क की धारणा यह बताती है कि प्रशुल्क कितनी मात्रा में लगाये जायें ताकि देश का अधिकतम कल्याण हो।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
  153. प्रश्न- अनुकूलतम प्रशुल्क तथा कल्याण निहितार्थ पर टिप्पणी लिखिए।
  154. प्रश्न- विदेशी विनिमय बाजार के कार्यों का विवरण दीजिए।
  155. प्रश्न- विनिमय दर क्या है? विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाने वाले विभिन्न घटकों का विवेचन कीजिए।
  156. प्रश्न- विनिमय दर को प्रकाशित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
  157. प्रश्न- विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले उन घटकों का वर्णन कीजिए जो विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाते हैं।
  158. प्रश्न- मुद्रा की परिवर्तनीयता से आप क्या समझते हैं?
  159. प्रश्न- क्रय शक्ति समता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  160. प्रश्न- टकसाल दर समता सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  161. प्रश्न- विनिमय नियोजन क्या है? भारत में विनिमय नियन्त्रण के क्या उद्देश्य हैं? इस दिशा में भारत सरकार ने हाल के वर्षों में क्या किया है?
  162. प्रश्न- विनिमय नियंत्रण की विधियों का वर्णन कीजिए।
  163. प्रश्न- विनिमय नियन्त्रण की अप्रत्यक्ष विधियों को समझाइये ।
  164. प्रश्न- वैश्विक वित्तीय संकट का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विनिमय नियंत्रण के उद्देश्यों को बताइये।
  166. प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दरों के पक्ष में तर्क दीजिए।
  167. प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दर के विपक्ष में तर्क दीजिए।
  168. प्रश्न- अग्रिम विनिमय तथा तैयार सौदों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  169. प्रश्न- हेजिंग (Hedging) से आप क्या समझते हैं?
  170. प्रश्न- अन्तर्पणन क्रियाएँ क्या हैं?
  171. प्रश्न- मुद्रा की परिवर्तनीयता से आप क्या समझते हैं?

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